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एस. खान। मुंशी प्रेमचंद का जन्म 30 जुलाई 1880 में बनारस के एक गांव लमही में हुआ था। उनकी माता का नाम आनंदी देवी और पिता का नाम अजायब राय मुंशी था। जो अपने गांव लमही के एक डाकखाना में मुंशी के पद पर थे।

उन का घराना गरीब था। कम उम्र में माता का निधन हो गया और सौतेली मां की देखरेख में इनका पालन-पोषण हुआ। 14 वर्ष की आयु में इनका विवाह हो गया। 1 वर्ष के पश्चात पिता की भी मृत्यु हो गई।

और वह आठवीं कक्षा में थे,अब घर की सारी जिम्मेदारियां इनके सर पर आ गई। चूँकि उनकी शादी उनकी मर्जी के खिलाफ जबरदस्ती किसी लड़की से कर दी गई थी।

बाद में इन्होंने अपने इच्छा के अनुसार 11 वर्ष की विधवा शिवानी देवी से शादी की। जब शिवानी देवी को इनकी पहली शादी के बारे में पता चला तो वह उनसे लड़ने झगड़ने लगी।

लेकिन कुछ ही दिनों के बाद सब ठीक-ठाक हो गया। दोनों एक दूसरे के साथ हंसी खुशी जीवन यापन करने लगे।

मुंशी प्रेमचंद की शिक्षा-

उर्दू व फारसी पढ़ने के बाद इंट्रेंस का इम्तिहान पास किया। प्राइमरी स्कूल में टीचर हो गए। लेकिन शिक्षा का सिलसिला जारी रखा और तरक्की करते करते बीए की डिग्री हासिल कर ली।

मुंशी प्रेमचंद का शौक-

प्रेमचंद को बचपन से ही कहानियां लिखने का बहुत शौक था। एक बार तो इन्होंने किताब की एक दुकान पर किताब बेचने की नौकरी कर ली ताकि किताबों को पढ़ने का अच्छा मौका मिल सके।

और लिखने में भी आसानी हो। जब आप 1902 में इलाहाबाद के कॉलेज में ट्रेनिंग के लिए दाखिल हुए तब आपको अपना शौक पूरा करने का मौका मिला।

मुंशी प्रेमचंद के लेख-

प्रेमचंद का सबसे पहला नावेल “असरारे मआबद” नवाब राय के नाम से बनारस के पत्रिका “आवाज़े ख़ल्क़” में छपा। उसके बाद इनके अफसानो का मजमूआ ” सूजे वतन” छपा।

यह किताब वतन की मोहब्बत, वतन की आजादी और बगावत जैसे टॉपिक पर लिखी गई थी। इसीलिए ब्रिटिश हुकूमत ने इस पर पाबंदी लगा दी। और गोरखपुर की हुकूमत ने इसके सभी कॉपियों को मंगाकर जलवा दिया।

और उनके लिखने पर पाबंदी भी लगा दी। लेकिन बाद में पत्रिका “जमाना” के संपादक और अपने प्रिय दोस्त दया नारायण के मशवरे से अपने कलमी नाम प्रेमचंद्र से पत्रिका जमाना के लिए कहानियां और लेख लिखना शुरू किया।

और इसी नाम से हिंदी और उर्दू में प्रसिद्ध हुए। उस समय देश में आजादी की तहरीक बढ़ रही थी प्रेमचंद गांधी जी से सहमत हुए और सरकारी नौकरी से इस्तीफा दे दिया। और तब और भी बेबाकी से लिखने लगे।

प्रेमचंद के नॉवेल-

मुंशी प्रेमचंद ने दो दर्जनों से ज्यादा नावेलें लिखी। जिनमें से कुछ तो बहुत प्रसिद्ध हुई और उसी ने आपको अमर कर दिया। जैसे कफन, कर्म भूमि, बाजार ए हुस्न, असरार ए मआबद,चौगाने हस्ती, गोशा ए आफियत, जलवा ए ईसार, निर्मला, हम खरमा और हम सवाब, बेवा, ग़बन, गोदान।

लेकिन जो प्रसिद्धि गोदान और कफन के हिस्से में आई वह दूसरे को ना मिल सकी। गोदान को भारत के बेहतरीन नोवेलों में गिना जाता है। जो एक बेहतरीन नावेल है जिसमें होरी को गरीबी की चक्की में पिस कर मरता हुआ दिखाया गया है।

“कफन” जिसमें एक कामचोर बाप और बेटे का जिक्र है। जो अपनी बहू को जचगी की हालत में मरता हुआ देखता है। और उसके पास कफन का पैसा भी नहीं होता है। हमदर्दी के कारण जब लोग कफन के लिए पैसा इकट्ठा कर देते हैं तो दोनों बाप बेटे पैसा लेकर शराब खाना जाते हैं।

और पूरा पैसा बर्बाद कर देते हैं और यह कहते हुए अपनी जान छुड़ा लेते हैं, कि कैसा बुरा रिवाज है कि जिसे जीते जी तन ढकने के लिए चिथड़ा भी ना मिले उसे मरने पर नया कफन चाहिए।

प्रेमचंद के अफसाने-

प्रेम बत्तीसी, प्रेम पच्चीसी, प्रेम चालीसी, आखिरी तोहफा, दूध की कीमत, वारदात ये सब आपके अफसानों के मजमूये हैं। इनके अतिरिक्त आपने ड्रामा और कई लेख भी लिखे हैं।

प्रेमचंद की कहानियों के किरदार-

निर्धन, गरीब, मोहताज और मजलूम होते थे। जिन पर जमींदार और महाजन अन्याय करते थे। और आप इनकी न्याय के लिए अपनी कहानियों में आवाज उठाते थे। इसलिए जहां आपको कलम का सिपाही कहा गया है,वही आपको कलम का मजदूर भी कहा गया है।

प्रेमचंद के गुण-

प्रेमचंद एक दर्द मंद दिल के मालिक थे। वह गांधीजी के ख्यालात से सहमत थे उनके दिल में वतन की मोहब्बत उसका सुधार और तरक्की का जज्बा और उसकी बुलंदी की तड़प थी।

अतः उन्होंने अपने लेखों में सामाजिक जिंदगी को अपना शीर्षक बनाया और सामाजिक सुधार के इरादे से अफसाना लिखने लगे। सच्चाई और असलियत प्रेमचंद के अफसानो का जौहर है।

जबान के एतबार से वह सादा और आसान कहानियां लिखते हैं। उनके कलम से निकली हुई बातें पढ़ने वालों के दिलों पर उतर जाती हैं। वह हालत और जगह के अनुसार हिंदी उर्दू दोनों से अल्फाज लेकर अपने गद्य को रोचक और पुर असर बनाते।

आप हर वर्ग के लोगों की जबान लिखने पर ताकत रखते थे। इसी कारण अदबी सितारों ने आपको कलम का सिपाही कहा है।

प्रेमचंद का निधन-

आखिरकार कलम का यह सिपाही 8 अक्टूबर 1936 को वतन की खिदमत करके इस संसार को अलविदा कह गए।

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