savitri-bi-phoole-janmdin,मनाया गया राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले का जन्मोत्सव,

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सिद्धार्थनगर। राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले चेतना मंच के तत्वावधान मे एक संगोष्ठी का आयोजन बुधवार को ढेबरुआ चौराहे पर किया गया। संगोष्ठी मे माता सावित्रीबाई फुले का जन्मदिन बड़े ही धूमधाम से मनाया गया।

अनुयायियों ने सावित्रीबाई फुले के साथ गौतम बुद्ध एवं डा.भीमराव अम्बेडकर के चित्र पर पुष्प चढाकर अपनी श्रद्धा व्यक्त की। वक्ताओं ने फुले के जीवन संघर्ष पर प्रकाश डाला।

कार्यक्रम मे मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद भारतीय बौद्ध महासभा के मण्डल महासचिव केदारनाथ आजाद ने कहा कि सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र के सतारा जिले के एक छोटे से गांव नयागांव मे हुआ था। इनके पिता का नाम खंडोजी व माता का नाम लक्ष्मी है। सावित्रीबाई फुले भारत की पहली महिला शिक्षिका और एक सामाजिक कार्यकर्ता थी, जिन्होंने देश की समस्त महिलाओं के भीतर ज्ञान जगाने का सफल प्रयास किया।

विशिष्ट अतिथि भारतीय बौद्ध महासभा के जिलाध्यक्ष राममिलन गौतम ने कहा कि माता सावित्रीबाई ऐसे समय मे महिलाओं के लिए संघर्ष किया जब भारत मे महिलाओं के साथ बहुत भेदभाव होता था। उनको शिक्षा के अधिकार से वंचित रखा गया। इससे समाज मे महिलाओं की स्थिति दिन प्रतिदिन दयनीय होती चली गई। बचपन मे सावित्रीबाई फुले को भी स्कूल जाने से रोका गया था, लेकिन उन्होंने शिक्षा प्राप्त करने की जिद नही छोडी और अपना संपूर्ण जीवन महिला सशक्तिकरण को न्योछावर कर दिया।

बहुजन शक्ति पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष विशेन्द्र पासवान ने कहा कि माता फुले अपने पति ज्योतिराव फुले के सहयोग से अहमदनगर और पुणे मे शिक्षक प्रशिक्षण लेकर शिक्षिका बन गई। अपने पति के साथ मिलकर उन्होंने 1848 मे पुणे मे लडकियों के लिए पहला स्कूल खोला। दोनों ने मिलकर भारत मे कुल 18 स्कूल खोले। महिलाओं को शिक्षित करने के पहल को लेकर उनको पुणे मे जबरदस्त विरोध का सामना करना पडा। जब वे स्कूल मे पढाने जाती थीं तो महिलाएं उनपर गोबर और पत्थर फेंकती थी, क्योंकि महिलाओं को लगता था कि सावित्रीबाई फुले लडकियों को पढाकर धर्म के खिलाफ काम रही रही हैं।

विशिष्ट अतिथि शिवचन्द्र भारती ने कहा कि सावित्रीबाई फुले विधवाओं के लिए एक आश्रम खोलकर निराश्रित महिलाओं, बाल विधवाओं और परित्यक्त महिलाओं की एक सहारा बनी। इसी आश्रम मे वे महिलाओं और लडकियों को पढाती भी थीं। जाति और पितृसत्ता से संघर्ष करते हुए उनके काव्य संग्रह प्रकाशित हुए।उन्होंने चार पुस्तकें भी लिखी। उन्हे आधुनिक मराठी काव्य का अग्रदूत भी कहा जाता है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता आयोजक शत्रुघ्न प्रसाद और सफल संचालन जयप्रकाश विश्वकर्मा ने किया।
इस दौरान जयकिशोर गौतम,रमेश कुमार गौतम, अरुण कुमार भारती, बाबूराम बौद्ध, गौरी शंकर, अलगू बौद्ध, राजकुमार यादव, उमेश गौतम,जानकी, डॉक्टर मनोज गौतम, सुभाष चमार उर्फ टाइगर,जगदीश, विनोद, राजेंद्र भारती, अंगूर बाबू,मिशनरी गायिका माया बौद्ध, मिशनरी गायक अभिषेक गौतम,बिंदु लाल,अमित कुमार, मदन कुमार सहित भारी संख्या मे महिलाएं एवं बच्चे मौजूद रहे।

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