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इटवा, सिद्धार्थनगर। स्थानीय तहसील क्षेत्र में एक मामला चर्चा का विषय बना है। जिसमें कोविड-19 के दौरान लंच पैकेट वितरण करने का आधा भुगतान न मिलने की बात पर कैटर्स और अधिकारी आमने सामने हैं।

आधा भुगतान न मिलने की बात पर कैटर्स और अधिकारी आमने सामने

जानकारी के अनुसार स्थानीय तहसील क्षेत्र के ग्राम खानकोट सेमरी निवासी यादव कैटर्स का मालिक ओम प्रकाश पुत्र राजकुमार उर्फ तहसीलदार यादव ने जिला अधिकारी से लेकर मुख्यमंत्री तक लिखित शिकायती प्रार्थना पत्र देकर भुगतान दिलाए जाने की मांग किया है। जिस पर अब तक कोई कार्यवाही नहीं हुई है।

शिकायती प्रार्थना पत्र

मुख्यमंत्री को दिए शिकायती प्रार्थना पत्र में कहा गया है कि कोविड-19 आपदा में इटवा तहसील में समस्त कोरेंटाइन सेंटर पर भोजन का पैकेट उपलब्ध कराया गया जिसका बिल 13 लाख 93 हजार 2 सौ रू. तथा कम्युनिटी किचन सेंटर का बिल 18 लाख 17 हजार 360 रूपया व तहसील इटवा में 2000 किट उपलब्ध कराया जिसका बिल 8 लाख 52 हजार 260 रूपया है।

इस प्रकार कुल 40 लाख 62 हजार 8 सौ 20 रूपया का बिल बना है। जिसमें से विभिन्न तिथियों में चेक के माध्यम से 20 लाख 87 हजार रुपया का भुगतान मुझे मिल चुका है। जबकि शेष 19 लाख 75 हजार 820 रुपए के बिल का भुगतान अभी भी मुझे नहीं प्राप्त हुआ है।

तहसीलदार इटवा अरविंद कुमार का पक्ष

जबकि मामले में तहसीलदार इटवा अरविंद कुमार का कहना है कि कोविड-19 संक्रमण के शुरुआती दौर में 40 रुपये प्रति व्यक्ति भुगतान करने का कोई शासनादेश नहीं था। उस समय तुरंत नकद भुगतान या चेक के माध्यम से भुगतान करने की व्यवस्था थी।

इस लिए संचालक को पहले आपूर्ति किए गए सामानों का नकद भुगतान व शासनादेश आने के बाद का चेक से भुगतान कर दिया गया था। अब गलतनीयत के कारण नकद दी गई धनराशि का दोबारा बिल प्रस्तुत करके भुगतान प्राप्त करने के लिए दबाव बनाया जा रहा है।

यह पूर्णतया नियम विरुद्ध और धोखाधड़ी है। इसके संबंध में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करने को थानाध्यक्ष इटवा से कहा गया है।

दोनों पक्षों के तर्काें में भिन्नता

लेकिन दोनों तरफ के तर्काें पर ध्यान दे तो भिन्नता नजर आती है।

तहसीलदार इटवा का कहना है कि पहली मई से यादव कैटर्स ने काम किया है। जिसका उसको भुगतान किया जा चुका है।

यादव कैटर्स का कहना है कि हमने 30 मार्च से काम किया है। हमारे बाउचर को प्रमाणित करते हुए तहसील प्रशासन ने हमें भुगतान दिया है। जिसका मेरे पास प्रमाण है।

गम्भीर हैं दोनों तरफ के आरोप

यदि आरोपों पर गौर करें तो दोनों तरफ के आरोप गम्भीर हैं। एक तरफ सामान देने के बाद आधा भुगतान न देकर धन ऐंठ लेने का आरोप है, तो दूसरी तरफ एक बार भुगतान लेने के बाद बदनीयती से दोबारा भुगतान मांगने का आरोप है।

यदि वास्तव में किसी भी तरफ से इतना बडा विस्फोटक भ्रष्टाचार हुआ है, जिसमें धन ऐंठने की बात कही जा रही है। या एक बार भुगतान लेने के बाद दुबार भुगतान मांगने की बात कही जा रही है।

तो ऐसे में सांच को आंच क्या। कोई कितना भी बडा व प्रभावशाली व्यक्ति हो तथ्यों, तर्काें व साक्ष्यों से उसके झूठ को पकडा जा सकता है।

रही बात जहां पैसों का लेने देन की हो तो वहां जरूर लिखा पढ़ी होती है। चेक, बैंक से लेने देने तो स्वयं एक लिखित सबूत है। लेकिन यदि नकदी का लेने देने हो तो उसका विवरण दिन, तारीख, समय, गवाह आदि दोनों पक्षों द्वारा लिखा जाता है।

लेकिन यदि लेन देन चोरी हो तो कुछ भी लिखा पढ़ी नहीं होती है। ऐसे में यह एक गम्भीर जांच का विषय है। जिसमें नीर, क्षीर विवेकी की तरह निष्पक्षता से जांच की जाए तो सत्यता सामने आ जाएगी।

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