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शैलेन्द्र पण्डित, बांसी। इतिहास हमेशा दोहराया जाता है। यह सभी जानते हैं, लेकिन फिर भी इंसान गलती करता ही जाता है। कुछ ऐसी ही कहानी कोरोना वायरस महामारी के फैलने की है।

ऐसे समय काल में रोजी-रोटी के चलते लोग अपना घर परिवार सब भूल जाते हैं, और चकाचौंध की दुनिया में जीने की कला सीख लेते हैं। लेकिन जब सब कुछ हाथ से निकल जाता है तब सभी को अपना घर परिवार, अपना गांव अपने लोग याद आते हैं।

ऐसा ही कुछ इस कोरोना वायरस महामारी के दौर में शुरू हो गया। दूरदराज दूसरे प्रदेशों में रह रहे लोग अपने घर परिवार में चाहे जिस हालत में हो पहुंचने की कवायद शुरू कर दिये हैं।

परिणाम स्वरूप आने वाले प्रवासी चाहे सरकारी बस हो या फिर अन्य साधन से हर हाल में अपनी मिट्टी में पहुंचना चाहते हैं। आलम तो यह है कि कुछ प्रवासी ट्रकों में जहां बैठने की जगह न हो फिर भी बच्चों, महिलाओं के साथ आ रहे हैं। रोज सुबह से लेकर देर रात तक प्रवासी मजदूरों के आने का सिलसिला चलता ही रहा है।

प्रवासी मजदूर के यात्रा का एक वाकिया-

ऐसा ही एक वाकिया मंगलवार को रोडवेज चौराहे पर देखा गया जहां कई युवक पीठ पर बैग लादे आ रहे थे। जिसमें से एक 30 वर्षीय युवक लालू यादव पुत्र शंकर यादव ने धानी रोड का रास्ता पूछा जिस पर उससे पूछा गया कि कहां जाना है।

उसने बताया-जाना तो महुलानी है मगर वहीं के एक पत्रकार सुभाष चंद्र पांडेय धानी रोड पर ही रहते हैं। उनसे मिलना है। प्रवासी यात्री की दशा देखकर ऐसा लग रहा था जैसे यात्रा का कितना कष्ट इसके शरीर व मन में भरा है। उसे पत्रकार सुभाष चंद पांडेय के घर पहुंचाया गया। जहां वह पांडेय जी से मिला और पहले तो खूब रोया फिर उसने जो आपबीती बताई वह सुनकर वहां उपस्थित हर व्यक्ति की आंखें नम हो गई।

भारत के सभी प्रवासी मजदूरों की आपबीती-

यही आपबीती भारत के सभी प्रवासी मजदूरों की है। जो अपने जान को जोखिम में डाल कर गांव की मिट्टी तक सही सलामत पहुंचने की तमन्ना लेकर घर से निकल पडे हैं। प्रवासी मजदूरों को कहना है कि बहुत कठिन है डगर पनघट की लेकिन । ऐ मौत! बस इतना समय दें कि अपने घर तो पहुंच जाएं। यात्रा की सभी परेशानियों को झेलते हुए प्रवासी अपने घरों तक पहुंच रहे हैं। तो कुछ मार्ग दुर्घटनाओं ने अपनी जान गवां चुके हैं।

युवक लालू यादव ने अपनी सूखी आवाज में बताया-

युवक लालू यादव ने अपनी सूखी आवाज में बताया कि महाराष्ट्र से कई अन्य लोगों के साथ एक ट्रक पर सवार होकर बस्ती तक आया। उसने बताया कि ट्रक वाले ने उससे बस्ती तक पहुंचाने का बत्तीस सौ रुपए लिया था। ट्रक वाले ने मुझे बस्ती हाइवे पर उतार दिया।

मैं सडक पर भूखा-प्यासा और थकान से चूर कुछ देर बैठ गया। फिर से ढ़ाढस बांधा और बस्ती से पैदल चलकर बांसी पहुंचा। पैदल चलते चलते मेरे जूते का सोल फट गया था। मैंने अपनी शर्ट का एक हिस्सा फाड़कर जूते के सोल को बांध लिया।

उसकी मनोदशा देखने से ही यह प्रतीत हो रहा था कि जब इसकी ये हालत है। तो अन्य जो बच्चों महिलाओं के साथ आ रहे हैं, उनकी क्या दशा रही होगी ? बहरहाल !! पत्रकार सुभाष चंद्र पांडेय ने उसे भोजन करवाया और उसे आराम करने के लिए कहा।

कुछ यही कह रहे थे-

तो वहीं कुछ ऐसे लोग भी मिले जो यही कह रहे थे। हे !!यमराज जी बस घर पहुंचने दो…. सबसे मिल तो लेने दो। फिर मुझे ले चलो….! परिवार का मुंह तो देख लूं। इस तरह के अनगिनत वाकिए प्रतिदिन देखने को मिल रहे हैैं।

प्रवासियों के आने का सिलसिला भी अनवरत चल रहा है। सवाल उठता है कि इनमें से कितने लोग कोरोना वायरस महामारी से संक्रमित होंगे और कितने नहीं और कितने अन्य को संक्रमित करेंगे या खुद संक्रमित होंगे। यह तो ऊपर वाला ही जानेगा….!! हे ईश्वर अब तू ही सहारा है। जैसा करेगा शायद उसी में भला होगा!!

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