सिद्धार्थनगर। दीपावली का पर्व सुख-समृद्धि एवं ऐश्वर्य का पौराणिक पर्व माना गया है। दीपावली के इस महान पर्व पर सृष्टि के विधाता गणेश एवं धन्य धान्य तथा ऐश्वर्य की देवी लक्ष्मी की पूजा षोड्शोपचार विधि से करने पर ऋण एवं दरिद्रता का अवश्य ही नाश होता है और लक्ष्मी की वृद्धि होती है। मानव को धन्य धान्य एवं ऐश्वर्य प्राप्त होता है।
दीपावली के पर्व पर मंगलकर्ता एवं अमंगल के विनाशक भगवान श्रीगणेश का सर्वप्रथम पूजन यदि मनुष्य करता है तो उसका मार्ग प्रशस्त होता है। यदि गणेश अथर्वशीर्ष तथा अष्टोत्तर शतनाम स्त्रोत (108 नाम) का जप व पाठ करके देवी लक्ष्मी श्री सूक्त एवं लक्ष्मी स्त्रोत का पाठ षोडशोपचार विधि से करके कलश स्थापना और नवग्रह का पूजन करने से मानव जीवन की दिशा और दशा बदल जाती है। उसे एक अलग सुख की अनुभूति होने लगती है।
“ ऊँ ब्रह्मामुरारित्रिपुरांतकारी भानुः शशी भूमिसुतो बुधश्च।
गुरुश्च शुक्रः शनिराहुकेतवः कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम्।।”
यद्यपि यह कथा महाराजा बलि से लेने पर यह ज्ञात होता है कि जो व्यक्ति श्रद्धा और भक्ति से देवियों और देवताओं की आराधना करता है, उसके मनोकामनाओं की पूर्ति अवश्य होती है। जैसे एक बार दैत्यराज बलि ने सौ अश्वमेघ यज्ञ करने का दृढ़ संकल्प लिया। उनमें से जब 99 यज्ञ पूरे हो चुके और मात्र एक ही शेष था तब देवताओं के राजा इंद्र को अपना सिंहासन छिन जाने का भय सताने लगा। क्योंकि ऐसी मान्यता है कि जो कोई भी सौ अश्वमेघ यज्ञ बिना किसी रूकावट के सम्पन्न कर लेता है तो वह इंद्रासन का अधिकारी हो जाता है।
इंद्र रूद्र आदि देवताओं के पास पहुंचे किंतु कोई उपाय नहीं मिला-
इसी भय के कारण इंद्र रूद्र आदि देवताओं के पास पहुंचे किंतु कोई उपाय नहीं मिला। तब समस्त देवतागण इंद्र को साथ लेकर क्षीर सागर में शेषशायी भगवान विष्णु के पास पहुंचे और पुरुष सूक्त आदि देवमंत्रों से भगवान विष्णु की स्तुति की और इंद्र की पीड़ा को सुनाये। तत्पश्चात भगवान विष्णु ने इंद्र को उनके भय का अंत करने का आशीर्वाद दिया और कहा कि मैं स्वयं 52 अवतार धारण करके सोवां अश्वमेघ यज्ञ करते हुए दैत्यराज बलि के यहां परीक्षा लेने अवश्य जाऊंगा और ऐसा ही हुआ।
वामन भगवान ने दैत्यराज बलि के सौवें अश्वमेघ यज्ञ-
वामन भगवान ने दैत्यराज बलि के सौवें अश्वमेघ यज्ञ में पहुंचकर राजा बलि से तीन डेग पृथ्वी का दान मांगा। दानवीर बलि ने तीन डेग पृथ्वी देने का संकल्प किया तब यह बात दैत्यों के गुरू शुक्राचार्य को नहीं भाया और उन्होंने ऐसा संकल्प न करने के लिये राजा बलि को रोका। गुरु की बात नजर अंदाज कर वामन रूप तीन डेग पृथ्वी नापने का आग्रह किया। जिस पर एक डेग से वामन रूप ने सारी पृथ्वी नाप ली, दूसरे डेग से सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड और तीसरा डेग उनके शरीर पर रखकर नाप दिया। अब दैत्यराज बलि का पूरा शरीर वामन रूप धारी भगवान विष्णु के अधीन हो गया। इस पर श्री वामन देव ने राजा बलि से प्रसन्न होकर वर मांगने को कहा।
बलि ने बहुत ही विनीत भाव से कहा कि हे भगवन् ! आज से अनन्त काल तक कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी (धनतेरस), चतुर्दशी, (नरक चैदस), एवं अमावस्या (मुख्य दीपावली) इन तीन दिनों तक इस पृथ्वी पर मेरा राज रहे। इन दिनों में लोग दीपदान, दीपावली पूजा आदि करके हर्षोल्लास से दीपोत्सव का पर्व मनावें। लक्ष्मी का पूजन हो, देवी लक्ष्मी का निवास हो, ऐसा न करने वालों पर लक्ष्मी क्रुद्ध हो जावें। बस यही वरदान मुझे चाहिए।
बावन रूप भगवान विष्णु ने तथास्तु कहते हुए कहा की हे राजन्- इन तीन दिनों में लक्ष्मी पूजन कर दीप जलाकर हर्षोल्लासपूर्वक उत्सव मनावें तो उस घर में लक्ष्मी का निवास होगा और अंततः वह मेरे धाम को प्राप्त होगा। इतना कहकर बामन भगवान ने दैत्य राज बलि को पाताल लोक का राज देकर पाताल लोक में भेजा और इंद्र का भय दूर किया।
तभी से यानि अनादिकाल से लक्ष्मी पूजन व दीपदान आदि का उत्सव मनाया जाता है। लोगों के घर में कभी लक्ष्मी का अभाव नहीं होता है।