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डा. निसार अहमद खाँ। ईदुल अजहा त्याग, बलिदान और भाईचारे का सन्देश देता है। ईदुल अजहा पर्व अल्लाह के पैगम्बर(ईशदूत) हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के महान सुन्नत (अनुसरण) की याद ताजा करता है।

हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम का मानव सेवा के लिएकिये गये महान कार्यों का यह दिन विनम्रता से याद दिलाता है। जो हम सबको दूसरों की मदद के लिए प्रेरित करते हैं। ईदुल अजहा का त्यौहार कुर्बानी और त्याग का पैगाम देता है।

हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम का कार्य-

अल्लाह का सन्देश लोगों तक पहुंचाने, सर्वशक्तिमान निरंकार ईश्वर की पूजा करने, उसकी सर्वशक्तिान सत्ता में किसी और को साझा न करने, मानव को सीधी राह बताने, लोगों की मदद करने, अच्छे कार्याें को करने और बुरे कार्याें से दूर रहने की शिक्षा हजरत इब्राहीम अलैहिस्सालाम एक पैगम्बर (ईशदूत) के रूप में जीवन भर देते रहे।

अल्लाह ने ईशदूत के रूप में मानवता की सेवा करने, लोगों का जीवन पथ प्रकाशित करने का कार्य लेने के साथ उनकी कठिन परीक्षा भी लिया। जिसमें शैतान बाधा डालता रहा लेकिन वह सफल नहीं हो सका।
इसमें खुशी के साथ समर्पण की भावना है।

ईदुल अजहा और कुर्बानी का अर्थ-

कुर्बानी अर्थात् त्याग करके अल्लाह या ईश्वर को प्राप्त करने का सबसे प्रबल साधन माना जाता है। स्वयं को ईश्वर के नाम पर कुर्बान कर देना अर्थात अपनी सबसे प्रिय बस्तु की कुर्बानी देना है। जैसे भरी बस में खड़े वृद्ध या बीमार को अपनी सीट दे देना। जिंदगी और मौत से जूझ रहे व्यक्ति को खून दान कर देना, किसी भूखे को अपने हिस्से का खाना खिला देना ही कुर्बानी अर्थात् त्याग है। इसी भावना को ईदुल अजहा पर्व उजागर करता है।

ईदुल अजहा का पर्व और उसका इतिहास-

इस्लामिक कैलेण्डर के बारहवें अर्थात् अन्तिम महीना जिलहिज्ज की 10 वीं तारीख को यह त्यौहार दुनियाभर में मनाया जाता है। इसे सुन्नते इब्राहीमी के नाम से जाना जाता है। यह त्यौहार एक प्रेरणादायक प्रसंग से जुड़ा है। सुन्नी जामा मस्जिद के इमाम मौलाना मो. रइस नूरी बताते हैं कि हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने सपना देखा, जिसमें अल्लाह ने उनसे अपनी सबसे प्रिय बस्तु कुर्बान करने को कहा।

उन्होंने अपने कई प्रिय पशुओं की कुर्बानी किया। अल्लाह उनसे परीक्षा ले रहा था। वह फिर अपनी प्रिय चीज कुर्बान करने का सपना देखते रहे। हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम समझ गये कि उनके इकलौते बेटे से प्रिय और कोई चीज नहीं है।

हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने अपने बेटे हजरत इस्माईल अलैहिस्सलाम से इस बात को बताया तो वह खुशी से तैयार हो गये। उन्होंने कहा कि जो अल्लाह का हुक्म है उसे कीजिए।

श्री नूरी के अनुसार हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की यह सबसे बड़ी परीक्षा थी। क्योंकि एक तरफ अल्लाह का हुक्म तो दूसरी तरफ नब्बे साल की उम्र में उनके बढ़ापे का सहारा ग्यारह साल का इकलौता बेटा। लेकिन उन्होंने अल्लाह के हुक्म का पालन किया।

बाधा डालने के प्रयास में लगा रहा शैतान-

मेहमानदारी में जाने की बात बता कर घर से निकल गये। उनके जाने के बाद शैतान घर पर आया और हजरत इस्माईल अलैहिस्सलाम की माता जी से बताया कि आपके बेटे को कुर्बान करने के लिए ले गये हैं। जाकर उनको रोकिए। तो उनकी माता हजरत हाजिरा अलैहिस्सलाम ने कहा कि एक पिता उपने पुत्र के साथ ऐसा नहीं कर सकता है। तब शैतान ने कहा कि उन्होंने सपना में ऐसा देखा है। तब उनकी माता जी ने कहा कि अगर अल्लाह का आदेश है, तो मुझे कोई एतराज नहीं है।

फिर रास्ते में शैतान में हजरत इस्माईल अलैहिस्सलाम को रोक कर कहने लगा कि आपको पता है, अपके पिता जी आपको कुर्बान करने के लिए ले जा रहे हैं। तो हजरत इस्माईल अलैहिस्सलाम ने कहा कि अगर अल्लाह का हुक्म है, तो मुझे कोई एतराज नहीं है। इसी लिए हज के दौरान इसी स्थान पर शैतान को पत्थर मारा जाता है।

एक तरफ बेटे की असीम मोहब्बत तो दूसरी तरफ अल्लाह का हुक्म-

हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम अपने बेटे को कुर्बान करने के लिए मक्का के नजदीक मिना नामक पहाड़ी पर ले गये। बेटे ने अपने पिता के आंखों पर पट्टी बांध लेने को कहा कि कहीं बेटे की असीम मोहब्बत अल्लाह के हुक्म में बाधा न उत्पन्न करे।

हजरत इब्राहीम अ. बेटे के गर्दन पर छुरी चलाए और जब आंख से पट्टी उतारी तो देखा कि बेटे बगल में खड़े मुस्करा रहे हैं और उनकी जगह पर एक दुम्बा जबा हुआ है। फरिश्ता (देवदूत) हजरत जिब्राइल अलैहिस्सलाम ने बताया कि अल्लाह के हुक्म से हमने हजरत इस्माईल अलैहिस्सलाम को हटाकर उनकी जगह पर एक दुम्बा रख दिया  है।

अल्लाह को हजरत इस्माईल अलैहिस्सलाम की कुर्बानी नहीं चाहिए थी। अल्लाह सिर्फ आपका इम्तिहान ले रहा था। तभी से मुस्लिम समाज में हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम का अल्लाह के प्रति त्याग और समर्पण के भावना की शिक्षा देने वाला पर्व ईदुल अजहा मनाया जाता है।

कुरान के सुरह हज की एक आयत (22ः37) में कुर्बानी का असल मकसद बयां करते हुए कहा गया है कि अल्लाह के पास कुर्बान की गई चीज नहीं, बल्कि कुर्बान करने वाले की त्याग भावना पहुंचती है।

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