डा. निसार अहमद खाँ/जटाशंकर सोनी, सिद्धार्थनगर। भारतीय संस्कृति में गाय को माता का दर्जा दिया गया है। लेकिन व्यावहारिक जीवन में इस समय इसका दृश्य एकमद उल्टा दिखाई देता है। खेतों में किसान, सडकों पर वाहन मारता है। आखिर जाएं तो जाएं कहां हम गौमाता।
इस समय लोग इसके साथ न्याय नहीं कर रहे हैं। दूध दुहने के बाद उन्हें खुला छोड़ देते हैं और गऊ माता पेट भरने के लिए कूड़े में मुंह मारती फिरती है। खेतों में जाती है तो किसान मारता है। सडकों पर आती है तो चार पहिया वाहन ठोकर मार कर घायल करता है। पोलीथीन में बंद कूड़े कचरे में कांच तक होता है जो गायों के पेट में चला जाता और यही इनकी जल्द मौत का कारण भी बनता है।
इनके पालनहारों, जिम्मेदारों को नहीं है चिंता-
खेतों में जाने पर किसान क्रूरता दिखाते हुए डंडों से मारता है। सड़कों व गलियों में मड़राती यह गायें खुद तो अपनी जिंदगी को खतरे में डालती ही हैं। शहर की सुचारु यातायात व्यवस्था के संचालन में भी बाधक बन जाती हैं। देखने में आया है कि न तो इनके पालनहारों को चिंता होती है और न ही इनका देखरेख करने वाले जिम्मेदारों को।
नहीं दूर हो रही है गायों की दुर्दशा
सड़कों पर घूमती गायों को सुरक्षित रखने के लिए गऊशाला भी बनाया गया है। गौशाला की गायों के खानपान की व्यवस्था के लिए सरकार लाखों रू. पानी की तरह बहा रही है। बावजूद इसके इनकी दुर्दशा दूर नहीं हो रही है।
लोग गौरक्षा को लेकर अपनी राजनीति चमकाते नजर आते हैं। मांस के वाहन देखते ही शहर की सड़कों पर जाम लगाते व पुलिस प्रशासन के खिलाफ प्रदर्शन करते नजर आते हैं। लेकिन इन गौरक्षकों को कूड़े में मुंह मारती व सड़कां पर भटकती, घायल व बीमार गौमाताएं नजर नहीं आती हैं।
आखिर जाएं तो जाएं कहां हम गौमाता
शहर की सड़कों पर घूमती गौमाता, खेतों में डंडे ले कर मारता किसान, सडकों पर बैठी, चार पहिया वाहन की ठोकर से घायल, गौशाला में उचित खानपान न मिलने से लागर होकर मरती गायों की दुर्दशा किसी से छिपा नहीं है। गायों की भावभंगिमा और भाषा समझने वाले लोगों के अनुसार गायें कहती हैं कि खेतों में किसान, सडकों पर वाहन मारता है। आखिर जाएं तो जाएं कहां हम गौमाता।
कहीं मेरा श्राप पृथ्वी के कलयुगी मानवों के लिए काल न बन जाए
गौशाला में भर पेट भोजन नहीं। रहने और बठने की उचित जगह नहीं मिलता है। इस बरसात के मौसम में पानी, दिन की कडी धूप और रात की शीत और मच्छरों के प्रकोप का दंश झेलती हूँ। कहीं मेरा श्राप पृथ्वी के कलयुगी मानवों के लिए काल न बन जाए।
जीवों पर दया करना चाहिए।