सिद्धार्थनगर। ग्रामीण क्षेत्रों में युवाओं में नशाखोरी की बढ़ती लत खतरनाक रूप ले रही है। नशाखोरी के कारण ही समाज में चोरी, छेड़खानी, व्यभिचार की घटनाओं में वृद्धि हो रही है। जिसका दुष्परिणाम समाज और नशाखोर व्यक्ति के परिवार पर भी पड़ता है।
नशाखोरी के सेवन की तरफ आना-
जानकारी के अनुसार गांव में स्कूली बच्चे, महिलाएं व्यस्क पुरुष नशाखोरी के सेवन की तरफ आगे बढ़ रहे हैं। बच्चों में यह लत बड़ों से देखकर पड़ता है। जबकि व्यस्कों में और महिलाओं में शारीरिक थकान दूर करने, मानसिक थकान दूर करने, चिंता, टेंशन दूर भगाने के लिए तथा शौकिया भी किया जाता है।
अब तो विभिन्न चौराहों पर अंग्रेजी और देशी शराब की दुकानें हैं। जहां लोगों को आसानी से उपलब्ध हो जाता है। इसके अलावा गांवों में कच्ची दारू बनाने, बेंचने और पीने का चलन भी बढ़ा है। मिश्रौलिया क्षेत्र में आए दिन कच्ची दारू, लहन, महुआ आदि को नष्ट करने की सूचनाएं मिलती हैं।
इसी तरह गांव में ढ़ाबली पर गुटखा, सिगरेट, तंबाकू आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। इसके सेवन में लोग धीरे-धीरे आदी होते जा रहे हैं। जब एक गहरी लत उनको लग जाती है तो जब तक लोग इसका सेवन नहीं करते हैं तब तक उनको शांति नहीं मिलती है। नशाखोरी की यही लत आगे चलकर तमाम प्रकार की बीमारियां शरीर में उत्पन्न कर देता है।
वैसे सरकार और विभिन्न सामाजिक संगठनों द्वारा नशा मुक्ति और नशा उन्मूलन के लिए तमाम कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। फिर भी लोगों में इसका असर कम ही पड़ता है। इस स्वीट प्वाइजन को लोग आनन्द के लिए पैसे खर्च कर सेवन करते हैं।
इसके लिए जागरूकता लाने की जरूरत है और सेवन करने वाले लोगों को भी यह सोचना चाहिए कि आखिर हम इसका सेवन क्यों करते हैं। इस महंगाई और बेरोजगारी में नशा करके हम अपने शरीर के खून को विषैला रहे हैं। इस तरह से लोगों को नशाखोरी को समझने की जरूरत होगी।
गुटका का सेवन और पीक मुंह में रखना-
एक सज्जन का कहना है कि मैं गुटका का सेवन खूब जमकर करता था। गुटका फाडकर मुंह में रख कर कूंचता और घंटों इसका पीक मुंह में रखे रहता है। रात में खाता और कूंचते कंचते सो जाता था। सबेरे मंजन के समय कुल्ला करता था। कुछ दिन बाद भोजन के समय मेरा मुंह कम खलने लगा।
तब मैंने चिकित्सक को दिखाकर परामर्श लिया। उन्होंने कहा तत्काल गुटका छोडो उसके बाद दवा देंगे। फिर मैंने गुटका छोड दिया और दवा का प्रयोग किया। तब मेरा मुंह ठीक हो गया।
गुटका का सेवन और पीक मुंह में निगलना-
नोहर का कहना है कि मेरा एक मित्र खूब गुटका खाता था। उसका पीक थूकता नहीं था, निगल जाता था। धीरे धीरे उसका गुर्दा खराब हो गया। जब उसके शरीर में सूजन आया तो उसने चिकित्सक को दिखा कर दवा लिया। चिकित्सक ने दवा दिया और गुटका के सेवन से दूर रहने का परामर्श दिया।
दवा प्रयोग करने के साथ साथ वह गुटका चुपके से खाता रहा। एक समय ऐसा आया जब उसका गुर्दा एक दम खराब हो गया। तब उसका डायलेसिस होने लगा। फिर भी उसने गुटका खाना नहीं बन्द किया और इस तरह एक दिन वह काल के गाल में समा गया।
गुटका सेवन और बीमारियां-
चिकित्सकों का मानना है कि नशाखोरी से हृदय रोग की बीमारी, लीवर, स्नायु तंत्र, दृष्टिहीनता की तमाम बीमारियां आदि होती हैं। जो आगे चलकर एक कैंसर के रूप में बदल जाती हैं।