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गुफरान अहमद, बिस्कोहर, सिद्धार्थनगर।

जीते जी तिनका सम जाना मर जाने पर चट्टान कहां ।

कविधर दुनिया की रीति अजब बस मर जाने पर सम्मान यहां ।।

कार्य तुम्हारा निश्चित अनुपन दुनिया को है पूरा ध्यान।

कविधर थोडा धैर्य धरो मरणोपरान्त होगा सम्मान ।

पण्डित विभूतिधर द्विवेदी “कविधर”

उपरोक्त पंक्तियां किसी दूसरे स्थान के गुमनाम कवि की नहीं हैं। यह मशहूर पंक्तियां जनपद के जनपद के गौरव, युगपुरोधा प्रधानाचार्य कवि व शायर पण्डित विभूतिधर द्विवेदी “कविधर” की हैं। जो इसी जिला के कस्बा बिस्कोहर निवासी हैं।

जनपद सिद्धार्थनगर का अपना एक ऐतिहासिक महत्व है। यहां कई धर्मिक धरोहर हैं। इसी के साथ कई साहित्यिक धरोहर भी हैं। जिन्होंने साहित्य को अपार साहित्यिक धन सम्पदा दिया है। परन्तु आज वह उपेक्षित हैं। उन्हें कोई पूंछने वाला नहीं है। इनकी सुधि लेने वाला कोई नहीं हैं।

कस्बा स्थित श्री छेदीलाल इंटर कॉलेज से अवकाश प्राप्त प्रधानाचार्य पण्डित विभूतिधर द्विवेदी “कविधर” ने अपनी प्रतिभा और विद्वता से जनपद को गौरवान्वित किया है। उन्होंने हिंदी संस्कृत और उर्दू में कुल 11 पुस्तकें लिखी हैं।

इन पुस्तकों पर हिंदी संस्कृत और उर्दू के सशक्त हस्ताक्षर दिल्ली साहित्य अकादमी के अध्यक्ष विश्वनाथ त्रिपाठी, संस्कृत में लखनऊ के डॉक्टर बृजेश कुमार शुक्ल, लखनऊ के डॉक्टर पवन अग्रवाल, कुलपति रुहेलखंड विश्वविद्यालय झांसी के डॉक्टर सुरेंद्र दुबे, पद्म श्री प्राप्त कवि स्वर्गीय बेकल उत्साही जैसी तमाम हस्तियों ने अपनी अनुशंसाएं दी हैं।

लेकिन ऐसे विलक्षण कवि को कुछ स्थानीय पुरस्कारों के अलावा राष्ट्रीय व राजकीय स्तर पर ना तो कोई पुरस्कार मिला और न ही कोई आर्थिक सहायता मिली पाई है जिससे कि उनकी पुस्तकों का प्रकाशन हो सके। श्री कविधर ने बताया कि हमने हिन्दी, उर्द तथा संस्कृत में कई पुस्तकें लिखी हैं।

सरकार से नहीं मिला कोई आर्थिक सहायता-

मेरा कई लेख विभिन्न प्रत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुका है। विद्यालय में शिक्षा देने के साथ हम ने सहित्यिक सम्पदा समाज को दिया है। पर यह बड़ा दुखद है मेरी कोई पुस्तक अब तक प्रकाशित नहीं हो पायी है।

स्वरचित पंक्तिया सुना कर वह प्रसन्न होते हुए कहते हैं- जीते जी तिनका सम जाना मर जाने पर चट्टान कहां। “कविधर” दुनिया की रीति अजब बस मर जाने पर सम्मान यहां।। कार्य तुम्हारा निश्चित अनुपन दुनिया को है पूरा ध्यान। कविधर थोडा धैर्य धरो मरणोपरान्त होगा सम्मान

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