News Universal,टीवी चैनलों के रिपोर्टरों का बाढ़ से पीड़ित को तसल्ली देने का अनोखा अंदाज,

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एस.खान। कुछ टीवी चैनलों के रिपोर्टरों का परेशान लोगों को तसल्ली देने का अंदाज ही अनोखा है। मीडिया को तो अपनी इमेज दिखानी होती है फिर चाहे कोई मरे या जिए ऐसा ही कुछ होता है बाढ़ से पीड़ित लोगों के साथ। बाढ़ से पीड़ित व्यक्ति जो अपने छत पर चढ़कर अपने तमाम चीजों को पानी में बहता हुआ देखता है ।

  • हास्य संवाद 

क्या गुजरती होगी उस पर ऐसे में उसका मदद करने वाला तो कोई होता नहीं लेकिन टीवी चैनलों के रिपोर्टर उसके घाव पर उस वक्त नमक जरूर छिड़क देते हैं। जब वे उसके मुँह में माइक डालकर पूछते हैं कि आपको कैसा महसूस हो रहा है?

मैडम आप टीवी से हैं? आपसे तो यही कहना पड़ेगा कि बहुत अच्छा लग रहा है बहुत मजा आ रहा है। बाढ़ में मेरा पूरा घर बह गया है बूढ़े मां-बाप, पत्नी, बच्चों का पता नहीं चल रहा है। मैं खुद पेड़ की डाल पर पूरे 1 दिन रात बैठा रहा।

हमेशा यही डर सता रहा था

हमेशा यही डर सता रहा था कि पेड़ कहीं उखड़ कर बाढ़ में न बह जाए। ऐसी स्थिति में आदमी को कैसा लगेगा अच्छा ही तो लगेगा मजा ही तो आएगा।

सचमुच आपको मजा आ रहा है? अभी तक तो हमें जो भी मिला रोता बिलखता और परेशान मिला लेकिन आप अपना सबकुछ बह जाने के बावजूद इतने प्रसन्न हैं। तो बताइए हमारे दर्शकों को कि आपको इतना मजा क्यों आ रहा है?

इसलिए आ रहा है मैडम कि आप इतनी बुद्धिमान हैं कि हमें ऐसी स्थिति में देखकर भी यह सवाल पूछ रही है। इतनी बुद्धिमान संवाददाता को अपने बीच पाकर मजा ही तो आएगा और हमें खासतौर से मजा इसलिए आ रहा है कि इससे आपका चैनल बढ़ेगा और आपका करियर भी ऊंचा होगा।

अच्छा आप हमें यह बताएं कि बाढ़ का ऐसा मजा आपको इससे पहले कब मिला था?

मैडम यह कोई नई बात नहीं है यह हर साल मिलता है। अच्छा आप यह बताएं कि क्या आप इस आनंद को बार-बार लेना चाहते हैं? जी! जरूर कौन नहीं चाहेगा कि हर साल बाढ़ में उसका घर बह जाए, उसके पशु मर जाऐं, उसके घर वाले जीवित है या नहीं इसका पता उसको ना चले, बल्कि मैं तो चाहता हूं कि हर महीने बाढ़ आए।

आपका विचार तो बहुत अच्छा है, क्या आप हर महीने बाढ़ इसलिए तो नहीं चाहते हैं कि सरकार आपको मुआवजा देती रहे और आप साल भर मौज मनाते रहे?

बिल्कुल सही कहा मैडम आपने मैं तो चाहूंगा कि आप भी इसी तरह मौज मनाएं। क्या रखा है टीवी की इस नौकरी में, आपके शहर और मोहल्ले में भी इसी तरह बाढ़ आए, आप लोगों के घर भी इसी तरह बह जाए, पेड़ पर आपको भी 24 से 48 और 72 घंटे रहना पड़े,

घर परिवार के लोग कहां है

घर परिवार के लोग कहां है इसका पता ना चले बाद में यदि पता भी चले तो आपका कोई न कोई मर गया हो, आपको कई कई दिन तक तंबुओं में रहना पड़े, आपके यहां बीमारियां फ़ैले, आप उनका बहादुरी से सामना करें फिर से हर साल अपना नया घर बनाएं, और सरकारी दफ्तरों का चक्कर लगाएं और फिर आपको पता चले की बाढ़ राहत का पैसा तो सरकारी अधिकारी डकार गए हैं। व्हाट डू यू मीन? शर्म नहीं आती तुम्हें? बेहूदा!

माफ कीजिएगा हमारा संपर्क संवाददाता से टूट गया है हम कुछ देर बाद फिर बाढ़ ग्रस्त इलाके के सुंदर नजारे के साथ उपस्थित होंगे। ऐसे ही कुछ हालत है हमारे गोदी मीडिया के रिपोर्टरों की जिन में इंसानियत नाम की चीज देखने तक भी नहीं मिलती उनका मकसद सिर्फ अपना कैरियर और अपना इमेज बनाना होता है।

कुछ टीवी चैनलों के रिपोर्टरों का तो मकसद ही शायद लोगों के ज़ख्मों पर नमक छिड़कना ही होता है

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