सिद्धार्थनगर। उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर जिला में इटवा तहसील मुख्यालय से उत्तर दिशा में मात्र 13 किलोमीटर की दूरी पर स्थित विख्यात तीर्थस्थल जिगना धाम कई सभ्यता व संस्कृतियों का इतिहास समेटे हुए पर्यावरणीय एवं पर्यटनीय महत्व रखता है। यहां लक्ष्मी नारायण मन्दिर परिसर में प्रत्येक वर्ष अगहन शुक्ल पक्ष पंचमी को रामविवाह उत्सव का आयोजन होता है।
- आज 16 दिसम्बर को धनुष यज्ञ हुआ तथा 17 दिसम्बर को रामविवाह उत्सव आयोजित होगा। एक सप्ताह तक चलेगा मेला।
विख्यात तीर्थस्थल जिगना धाम-
आज 16 दिसम्बर 2023 को धनुष यज्ञ हुआ तथा 17 दिसम्बर 2023 को रामविवाह उत्सव का आयोजन होगा । इस अवसर पर एक बड़ा मेला लगता है। जो सप्ताह भर चलता है। इसमें जिला जेवार के श्रद्धालुओं के अलावा नेपाल राष्ट्र के तराई क्षेत्र के लोग भी आते हैं। यह दो देशों के भाइचारे को स्थापित करता है। मेले में दूर-दूर के व्यापारी, सर्कस, थिएटर आदि आते हैं। यह मेला एक सप्ताह तक चलेगा।
राष्ट्रीय एकता, अखण्डता का मिसाल-
आज भी यह राष्ट्रीय एकता अखण्डता और भाईचारे का जीता जागता मिसाल है। जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण यही है कि यहां आने वाले श्रद्धालु भगवान का दर्शन कर आशीर्वाद तो प्राप्त करते ही हैं, साथ में महंत बाबा विजय दास के उदार हृदय और आदर सत्कार से प्रभावित हुए बिना नहीं जा सकता है। यही सच्ची मानवता है।
जिगना धाम की मान्यताएं-
दंत कथाओं के अनुसार जगन्नाथ धाम को वशिष्ठ जी ने बसाकर भरद्वाज ऋषि को दे दिया था। जिसका अपभ्रंश में नाम बदलकर जिगना धाम हो गया है। यहां कई सौ साल पुराना एक श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर है। यहां श्रद्धालु नतमस्तक होकर श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं और झोली भरके अपनी मुरादें ले जाते हैं।
यहां के पूर्व व्यवस्थापक अनन्तगो लोकवासी बाबा रामकिशोर दास ने बताया था कि किंवदन्ती है कि दिनमान कुर्मी को एक दिन स्वप्न में अमुक मूर्ति और मंदिर दिखाई पड़ी। दिव्य मूर्ति ने यह आदेश दिया कि अमुक स्थान पर मंदिर का निर्माण करो।
उन्होंने इसी स्थान पर पूजन करके मंदिर निर्माण के लिए खुदाई की और नींव रखा। नींव के दक्षिण तरफ एक मूर्ति स्वयं प्रकट हुई। मूर्ति की पूजा होती रही, मंदिर का निर्माण होता रहा। जब मंदिर बनकर तैयार हो गया तब अवतरित हुई मूर्ति को मंदिर में स्थापित करने के लिए श्रद्धालु इकट्ठा हुए। इन लोगों ने देखा की मूर्ति वहां से गायब थी। यह लोग आश्चर्य में पड़ गए। इन लोगों ने जब मंदिर में देखा तो मूर्ति यहां स्वयं स्थापित मिली।
मन्दिर के ठीक सामने शंकर जी उसके बाद ब्रह्मा जी का मन्दिर है। इसके ठीक पूरब हनुमान जी और दुर्गा जी का मंदिर है। पुरातत्वविद् बताते हैं कि मंदिर परिसर के नीचे एक किला भी है।
पूर्व व्यवस्थापक अनन्तगो लोकवासी बाबा रामकिशोर दास का कहना था कि लोमश रामायण के हिंदी रूपांतरण में लिखा है कि श्री रामचंद्र जी जब सरयू नदी में विलीन होने लगे तो भक्तों ने उनसे पूछा कि अब आपका दर्शन कहां होगा ? तब श्री रामचंद्र जी ने कहा कि उत्तरायण दिशा में 13 धान्या पर श्यामशिला में चतुर्भुजी आकार में अपने समस्त शक्तियों के साथ निवास करूंगा।
इस पर बाबा रामकिशोर दास का तर्क था कि 13 धान्या 31 कोस के बराबर होता है। यह धाम अयोध्यापुरी से उत्तरायण दिशा में ठीक 31 कोस की दूरी पर स्थित है। 31 कोस के बीच में उत्तर दिशा में ऐसा धाम मिलने का अबतक कोई सबूत नहीं है।
जिगना धाम का प्रामाणिक इतिहास-
बाबा रामकिशोर दास ने बताया था कि 13 वीं सदी ईस्वी में अलाउद्दीन बादशाह के शासनकाल में यहां के महंत बाबा विष्णुदत्त थे, जो मूर्ति से वार्तालाप करते थे। इस बात की चर्चा दूर दूर तक फैली हुई थी। यही बात जब अलाउद्दीन बादशाह ने सुना तो वह अपनी सेनाओं सहित महंत और मूर्ति की वार्तालाप सुनने के लिए जिगना धाम पहुंचा और महंत जी से कहा कि आप मेरे सामने मूर्ति से वार्तालाप कीजिए।
महंत विष्णु दत्त ने मूर्ति से बातचीत करने के लिए कई बार उस को पुकारा परन्तु कोई आवाज नहीं आई। लेकिन जब आठवें बार उन्होंने कहा कि “मौन भयो बोलत केस नाहीं” तब मूर्ति से आवाज आई कि अब तू गूंगा हो जाएगा। क्योंकि अब मुझे आम आदमी के सामने बोलने पर मजबूर न होना पड़े। वह बेचारे जमीन पर गिर पड़े और उनकी जबान निकल आई।
इस वार्तालाप को देखकर अलाउद्दीन बादशाह ने 84 बीघा की बाउंड्री, 84 गांव और मंदिर को माफी दिया। 365 रुपया 50 पैसा की स्वर्ण मुद्रा प्रत्येक वर्ष मंदिर को देने का आदेश दिया। जो कि अंग्रेज शासन काल तक मिलता रहा। इसका रिकॉर्ड अब बस्ती मण्डल पुराना जिला बस्ती के रिकॉर्ड रूम में पत्रावली संख्या 4 पर दर्ज है।
आज मंदिर के पास मात्र एक बाग और 90 बीघा की जमीन बची है। इस को सरकार से कुछ मिलने के बजाए उल्टे लगान भी देना पड़ रहा है। इस ऐतिहासिक धरोहर को बचाने के लिए सरकार की तरफ से कोई कारगर कदम नहीं उठाया गया।
जिगना धाम के महंत बाबा विजय कुमार दास-
महंत बाबा विजय कुमार दास ने “बताया कि पर्यटन निधि से फर्श इत्यादि बनाया गया है जो ऊंट के मुंह में जीरा है। अब तक यह सरकारी उपेक्षा का शिकार रहा है। मन्दिर की अस्मर्थता और सरकारी सहयोग न मिलने के कारण शुलभ शोचालय और धर्मशाला इत्यिादि का निर्माण नहीं हो पाया है। वर्तमान भाजपा सरकार तथा प्रदेश के मुख्यमंत्री माननीय योगी जी महाराज खुद एक मठाधीश हैं, जिनसे इसके उद्धार की आशा है।
विख्यात तीर्थस्थल जिगना धाम की प्राचीनता-
इस ऐतिहासिक धरोहर की देखरेख भरद्वाज महंतों को उत्तराधिकार में मिलता रहा है। इसका कोई न्यास या कमेटी अब तक नहीं बना है। आज तक इस मंदिर की सेवा अनगिनत महंत कर चुके हैं। जिसका सबूत यहां की समाधियां बता रही है।
समाधियों के पास कई सौ साल से खड़ा बट वृक्ष इसका इतिहास बता रहा है। इस वृक्ष के ठीक पूरब दिशा में एक सूर्यकुंड है। इस पर एक सुंदर घाट बना है। जिस पर लोग स्नान करते और जल चढ़ाते हैं। मंदिर के बगल में एक प्राचीन कुआं भी है जिसका स्थान आज इंडिया मार्का हैंडपम्प ने ले लिया है।
क्योंकि अब इसके जल का प्रयोग बंद है। सुंदर बागों से घिरे इस ऐतिहासिक धरोहर पर प्रत्येक वर्ष अगहन शुक्ल पक्ष पंचमी को राम विवाह उत्सव का आयोजन होता है। इस अवसर पर एक बडा मेला लगता है। आप भी एतिहासिक जिगाधाम पहुंचकर मेला का आनन्द ले सकते हैं।