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डा. निसार अहमद खाँ। सिद्धार्थनगर। जिले की पांचों विधानसभा क्षेत्रों में चुनाव प्रक्रिया चार फरवरी से प्रारम्भ होगी। इस बीच राजनीतिक दलों के प्रत्याशी वर्चुअल रैली करने के साथ जनता से व्यक्तिगत सम्पर्क कर रहे हैं। इटवा विधानसभा 305 का चुनावी युद्ध कितने कोण का बनेगा। अभी यह स्पष्ट नहीं हो रहा है। राजनीतिक दृष्टिकोण से यह सीट बहुत ही महत्वपूर्ण है। एक तरफ राजनीति के पुरोधा पूर्व विधानसभा अध्यक्ष तो दूसरी तरफ बेसिक शिक्षामंत्री हैं।

इटवा विधानसभा 305

इटवा विधानसभा 305 के राजनीतिक दलों के प्रत्याशी अपने पार्टी के चुनावी घोषणा पत्र के साथ क्षेत्र की विभिन्न समस्याओं के सामाधान का आवश्वासन देकर जनता का समर्थन प्राप्त करना चाहते हैं। इटवा विधानसभा 305 का चुनावी युद्ध के समीकरण पर अभी शीत लहर का धुंध छाया है। पूर्व सांसद मो. मुकीम ने अभी अधिकारिक रूप से यह स्पष्ट नहीं किया है कि वह कांग्रेस में रहेंगे या किसी पार्टी के साथ खडे होंगे या निर्दल चुनाव लडेंगे।

तीन दिन पहले उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं से विचार विमर्श के लिए इटवा में अपने कार्यालय पर एक बैठक भी किया था।

पिछले कुछ महीनों की हलचलों

पिछले कुछ महीनों की हलचलों को देखा जाए तो सत्ता पक्ष के भाजपा से डा. सतीश चन्द्र द्विवेदी, सबसे बडी विपक्षी पार्टी समाजवादी पार्टी से पूर्व विधानसभा अध्यक्ष माता प्रसाद पाण्डेय और पीस पार्टी से इंजीनियर अमित मिश्रा का प्रत्याशी बनने का दावेदारी पहले से स्पष्ट था। जिसको लेकर क्षेत्र में जनता के बीच जनसम्पर्क, जनसभा, जनचौपाल आयोजित कर राजनीतिक जमीन को काफी उर्वरा भी बनाए हैं।
सम्बंधित पार्टियों ने भरोसा जताते हुए अपना प्रत्याशी भी बनाया है।

बहुजन समाज पार्टी ने चुनावी सरगर्मी शुरू होने से पहले अपने प्रत्याशी को बदल कर नए चेहरे पर भरोसा जताते हुए जनता के सामने पेश किया है।

ज्ञात हो कि वर्ष 2017

ज्ञात हो कि वर्ष 2017 में हाजी अरशद खुर्शीद ने बसपा के टिकट से इटवा विधानसभा 305 का चुनाव लड़ा था और 49316 मत पाकर दूसरे स्थान पर रहे। इसके बाद भी बसपा से जुड़े रहे। लेकिन पार्टी ने नए चेहरे हरिशंकर सिंह पर भरोसा जताते हुए उन्हें अपना प्रत्याशी बनाया।

ज्ञात हो कि हरिशंकर सिंह इससे पहले 2012 से 2017 के बीच अपने इटवा विधानसभा 305 में जनता के सुख दुख में शामिल रहे और भारतीय जनता पार्टी की नीतियों को आगे बढ़ाया। लेकिन 2017 चुनाव के समय पार्टी ने एक नए चेहरे पर भरोसा जताते हुए टिकट दे दिया था।

डॉ सतीश द्विवेदी यहां से चुनाव जीत गए। इसके बाद भी हरि शंकर सिंह भाजपा से जुड़े जुड़े रहे और पार्टी की नीतियों को आगे बढ़ाते रहे। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बीता हुआ ब्लॉक प्रमुख चुनाव में भी जब पार्टी ने उन्हें सहयोग नहीं दिया । उपेक्षा होने पर उन्होंने इस पार्टी से नाता तोड़ने का मन बना लिया था। इसके बाद उन्होंने पार्टी से नाता तोड़ लिया।

बसपा से उम्मीदवारी का

इधर बसपा से उम्मीदवारी का दरवाजा बंद होने के बाद हाजी अरशद खुर्शीद ने कांग्रेस से नाता जोड़ लिया और पार्टी ने इन पर भरोसा जताते हुए इटवा विधानसभा 305 से इनको प्रत्याशी घोषित कर दिया गया। ऐसे में वैचारिक निर्वात और राजनीतिक अंतर्द्वंद की स्थिति उत्पन्न हो गई। क्योंकि इटवा विधानसभा 305 से पूर्व सांसद मो. मुकीम कांग्रेस का परचम लेकर उसकी नीतियों को आम जन तक पहुंचाने का कार्य कर रहे थे। और पार्टी का प्रत्याशी दावेदार भी मान रहे थे। यह तो उनके विवेक पर था कि वह चुनाव स्वयं लडते या किसी को लडाते।

अफवाहों की तो बात ही अलग है जितने मुंह उतनी बातें लेकिन मीटिंग से एक दिन पहले उनसे बात किया गया। इस संबंध में उन्होंने बताया कि मीडिया के द्वारा पता चला कि अरशद जी को टिकट दिया गया है। मुझसे कोई राय नहीं लिया गया न मेरी कोई जानकारी है।

अब आगे वह किसी पार्टी के बैनर से चुनाव लड़ेंगे या निर्दल लड़ेंगे या किसी पार्टी में शामिल होकर किसी प्रत्याशी का सपोर्ट करेंगे। यह सब तो फैसले अभी उनके ऊपर हैं। उनके फैसले के बाद ही यह स्पष्ट होगा कि इटवा विधानसभा 305 का चुनावी मुकाबला कितने कोण का बन रहा है।

सभी पार्टियों के प्रत्याशी

इस बीच उक्त सभी पार्टियों के प्रत्याशी चुनाव आयोग के दिशा निर्देशों के अनुसार वर्चुअल रैली और व्यक्तिगत जनसंपर्क कर जनता को अपनी बात बता रहे हैं। अब जनता को यह तय करना है कि वह निष्पक्ष, निर्भय और निर्लोभ होकर बिना किसी लालच के इस लोकतंत्र के महापर्व में बढ़ चढ़कर हिस्सा ले और एक योग्य उम्मीदवार को चुनकर विधानसभा में भेजे।

लोकतंत्र का महापर्व

यह लोकतंत्र का महापर्व है। इसमें एक प्रत्याशी के दावेदार का दूसरे पार्टी से जा मिलना। या एक पार्टी का अपना प्रत्याशी बदलना कोई नई और खराब बात नहीं है। पार्टी और प्रत्याशी का सिर्फ एक ही उद्देश्य है कि लोक कल्याण और जनता के हित के लिए जनता की सरकार बनाएं।

भले ही एक आत्मा रूपी प्रत्याशी, शरीर रूपी पार्टी को बदल दे। या निर्दल चुनाव लडें। इससे कोई फर्क नहीं पडता है। यदि राजनीति जनता के हित के लिए है तो जनता स्वागत करेगी। बस कुछ देर के लिए मनमोटाव भी हो तो इतना कि दोबारा मिलें तो शर्मिन्दा न होना पडे। क्यांकि यह राजनीति है। राजनीति का ऊंट कब और किस करवट बैठता है। किसी को पता नहीं।

जनता की क्या मांग है? क्या हैं मुद्दे?

इटवा विधानसभा 305 के जनता की क्या मांग है? क्या हैं मुद्दे? जनप्रतिगण किस समस्या को बनाऐंगे बडा मुद्दा। इस पर अगली मुलाकात में बात करेंगे तब तक के लिए जय हिन्दी। जय लोकतंत्र।

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